रवींद्रनाथ टैगोर के उपन्यास और कहानियां

रवींद्रनाथ टैगोर, जिन्हें भारतीय साहित्य के महाकवि के रूप में जाना जाता है, एक प्रमुख बंगाली लेखक और कवि थे। उन्होंने विभिन्न विषयों पर अनेक उपन्यास और कहानियां लिखीं, जो भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से माने जाते हैं। उनकी कहानियां सामाजिक, दार्शनिक, और मानवता के मुद्दों पर आधारित थीं और उन्होंने व्यक्तिगत अनुभवों को भी अपनी रचनाओं में प्रकट किया।

यहां हम कुछ रवींद्रनाथ टैगोर की प्रमुख कहानियों के बारे में बात करेंगे:

  1. कबुलीवाला (The Cabuliwallah): यह कहानी एक छोटे से बच्चे और एक कबुलीवाले के बीच की दर्दनाक कहानी है। बच्चे की मासूमियत और कबुलीवाले की दयालुता को टैगोर ने अद्वितीय रूप से प्रस्तुत किया है। यह कहानी मानवता और सहयोग के महत्व को बताती है।
  2. गोरू (The Postmaster): इस कहानी में एक पोस्टमास्टर का किस्सा बताया गया है, जो गाँव में काम करने के लिए भेजा जाता है। वह गाँव के छोटे से बच्चे से मिलता है और उनके साथ बिताए गए समय में एक गहरी दोस्ती का आदान-प्रदान होता है। यह कहानी अकेलापन और साथीपन के विचारों को प्रस्तुत करती है।
  3. पुनर्नायक (The Return of Khokababu): इस कहानी में एक युवक की कहानी है जो अपने गाँव से दूर रहकर शहर में अपना करियर बनाने का प्रयास करता है। वह अपने गाँव के लिए क्या करता है और कैसे वह अपने मूलों को न भूलकर सही राह पर चलता है, यह कहानी दिखाती है।
  4. साधु (The Ascetic): इस कहानी में एक साधु के साथ एक संवाद का वर्णन किया गया है, जो ध्यान और आध्यात्मिक जीवन के महत्व को बताता है। साधु के विचार और टैगोर के संवाद से यह कहानी आध्यात्मिक उन्नति के महत्व को प्रकट करती है।
  5. फल फूल (The Fruit-Gathering): इस कहानी में टैगोर ने अपने आत्मा की खोज में जाने का सफर दिखाया है। वे प्रकृति के संग संवाद करते हैं और अपने आप को खोजते हैं। यह कहानी आत्मा के अद्वितीयता को गहराई से छूने का प्रयास करती है।

रवींद्रनाथ टैगोर की कहानियां व्यक्तिगत और दार्शनिक विचारों को सुंदरता से प्रस्तुत करती हैं और हमें मानवता, सामाजिक मुद्दे, और आध्यात्मिकता के महत्व को समझाने में मदद करती हैं। इन कहानियों के माध्यम से हम टैगोर के विचारों और उनके उद्देश्यों से प्रेरित हो सकते हैं और उनकी सोच, इच्छाशक्ति, और मनोबल का अध्ययन कर सकते हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर ने किसानों और दलितों के जीवन को कई बारीकी से देखा। उनके मानवीय मूल्यों के ह्रास के साथ ही उन्हें इस वर्ग की उपेक्षा के लिए कड़वाहट थी। उनके मन में सदैव इस वर्ग की उपेक्षा के लिए कड़वाहट रहती थी। यह तबका सदैव शोषित और गुलाम ही रहा।

रवींद्रनाथ ने काफी विचार-विमर्श किया, तो उन्हें अवसर मिला कि इस वर्ग में शिक्षा की कमी है। शिक्षा के अभाव में यह वर्ग सदैव शोषित रहता है। सदैव दूसरों को श्रेष्ठ मानने की मानसिकता से ऊपर नहीं उठ सका है। टैगोर ने शिक्षा को समाज के पृष्ठभूमि तक पहुंचाने का प्रण लिया।

कोलकाता शहर से कुछ दूर शांति निकेतन आश्रम की स्थापना करने का मन बना लिया। जब उन्होंने आश्रम के विषय में अपनी पत्नी को बताया तो वह हंस पड़ी।

आप सदैव विद्यालय शिक्षा से भागते रहे हैं, आप अब उसी शिक्षा को बढ़ावा देंगे? काफी विचार-विमर्श के बाद रवींद्रनाथ ने अपनी पत्नी को बताया कि यह पारंपरिक विद्यालय नहीं बल्कि गुरुकुल की भांति होगा। जहां शिक्षक और विद्यार्थी के बीच किसी प्रकार की कोई दूरी नहीं होगी। कोई चारदीवारी नहीं होगी।

शिक्षा प्रकृति के सानिध्य में होगा। प्रकृति शिक्षा का मूल स्रोत है। प्रकृति से प्रेरित होकर शिक्षा को बढ़ावा दिया जाएगा। शिक्षार्थी में नैतिक, चारित्रिक, और मानसिक बुद्धि पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। किताबी शिक्षा को जीवन में किस प्रकार उतारा जाए, उस पर विचार विमर्श होगा। छड़ी के बल पर रटंत शिक्षा का यहां कोई स्थान नहीं होगा।

पत्नी ने गुरुकुल के विचार पर अपनी सहमति जताई, तत्पश्चात शांतिनिकेतन की स्थापना हो सकी।

रवींद्रनाथ ने शांतिनिकेतन का द्वार समाज के उन पिछड़े लोगों के लिए खोल दिया जो शिक्षा से सदैव बंचित रहे थे। रवींद्रनाथ के लग्न और निस्वार्थ परिश्रम को देखते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें “गुरुदेव” की उपाधि प्रदान की थी।

गुरुदेव ने शांतिनिकेतन के अलावा अन्य विद्यालय की स्थापना की। यह विद्यालय समाज के हास्यिक स्तर पर रह रहे लोगों को शिक्षा प्रदान करने के लिए था।

मोरल –

  1. अशिक्षा परतंत्रता का कारण है। शिक्षा के अभाव में व्यक्ति स्वयं अपने को नहीं जान सकता।
  2. प्रकृति से मिली हुई शिक्षा जीवन के उद्देश्यों को बताती है।
  3. रटंत विद्या से बेहतर प्रकृति का सानिध्य है।

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